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'''प्रतीप''' [[कुरु वंश|कौरव वंश]] के एक बड़े प्रतापी राजा थे, जिन्हें यौवन काल में ही संसार से वैराग्य हो गया था।  
*यह दिलीप के पुत्र तथा [[देवापि]], [[शांतनु]] और [[बाह्लीक]] के पिता थे। जिन्होंने [[शांतनु]] को राज्य भार सौंप वानप्रस्थानश्रम किया था।<ref>वायु पुराण 99.234</ref> [[महाभारत आदि पर्व]] के अनुसार [[कुरु]] से छठी पीढ़ी में इनकी उत्पत्ति प्रतीत होती है।  
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*यह '''दिलीप''' के [[पुत्र]] तथा [[देवापि]], [[शांतनु]] और [[बाह्लीक]] के [[पिता]] थे। जिन्होंने [[शांतनु]] को राज्य भार सौंप वानप्रस्थानश्रम किया था।<ref>वायु पुराण 99.234</ref> [[महाभारत आदि पर्व]] के अनुसार [[कुरु]] से छठी पीढ़ी में इनकी उत्पत्ति प्रतीत होती है।  
*[[कुरु]] से अश्वान जिनका नामान्तर अविक्षित किया गया है।  
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*[[कुरु]] से अश्वान् जिनका नामान्तर अविक्षित् किया गया है।  
 
*अश्वान के परीक्षित आदि आठ पुत्र, [[परीक्षित]] के [[जनमेजय]], जनमेजय के [[धृतराष्ट्र]] हुए, धृतराष्ट्र के के पुत्र प्रतीप हुए। परंतु आदि पर्व 95-39-44 के वर्णन के अनुसार कुरु से [[विदुर]] उनसे अनश्वा, अनश्वा से परिक्षित, परिक्षित से [[भीमसेन]], भीमसेन से [[प्रतिश्रवा]] तथा प्रतिश्रवा से प्रतीप का जन्म कहा गया है।  
 
*अश्वान के परीक्षित आदि आठ पुत्र, [[परीक्षित]] के [[जनमेजय]], जनमेजय के [[धृतराष्ट्र]] हुए, धृतराष्ट्र के के पुत्र प्रतीप हुए। परंतु आदि पर्व 95-39-44 के वर्णन के अनुसार कुरु से [[विदुर]] उनसे अनश्वा, अनश्वा से परिक्षित, परिक्षित से [[भीमसेन]], भीमसेन से [[प्रतिश्रवा]] तथा प्रतिश्रवा से प्रतीप का जन्म कहा गया है।  
*राजा प्रतीप की पत्नी का नाम शैव्या सुनंदा था। इनके तीन पुत्र हुए [[देवापि]], [[शान्तनु]] और [[बाह्लीक]] ।<ref>भागवत पुराण 9.22.11; [[महाभारत आदि पर्व]] 94.61; 95.44; वायु पुराण 99.4.18; विष्णु पुराण 4.20,8.9</ref> इनके पास सुन्दर रूप तथा उत्तम गुणों से सम्पन्न युवती का रूप धारण कर गंगा आयी और इनके दाहिनी जाँघ पर जा बैठीं। इनके पूछने पर उन्होंने इनकी पत्नी बनने की इच्छा प्रकट की। तब इन्होंने उनका पुत्रवधू के रूप में वरण किया।<ref>[[महाभारत आदि पर्व]] 171-16</ref>   
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*राजा प्रतीप की पत्नी का नाम '''शैव्या सुनंदा''' था। इनके तीन [[पुत्र]] हुए [[देवापि]], [[शान्तनु]] और [[बाह्लीक]] ।<ref>[[भागवत पुराण]] 9.22.11; [[महाभारत आदि पर्व]] 94.61; 95.44; [[वायु पुराण]] 99.4.18; [[विष्णु पुराण]] 4.20,8.9</ref> इनके पास सुन्दर रूप तथा उत्तम गुणों से सम्पन्न युवती का रूप धारण कर गंगा आयी और इनके दाहिनी जाँघ पर जा बैठीं। इनके पूछने पर उन्होंने इनकी पत्नी बनने की इच्छा प्रकट की। तब इन्होंने उनका पुत्रवधू के रूप में वरण किया।<ref>[[महाभारत आदि पर्व]] 171-16</ref>   
  
 
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11:58, 28 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

प्रतीप कौरव वंश के एक बड़े प्रतापी राजा थे, जिन्हें यौवन काल में ही संसार से वैराग्य हो गया था।

  • यह दिलीप के पुत्र तथा देवापि, शांतनु और बाह्लीक के पिता थे। जिन्होंने शांतनु को राज्य भार सौंप वानप्रस्थानश्रम किया था।[1] महाभारत आदि पर्व के अनुसार कुरु से छठी पीढ़ी में इनकी उत्पत्ति प्रतीत होती है।
  • कुरु से अश्वान् जिनका नामान्तर अविक्षित् किया गया है।
  • अश्वान के परीक्षित आदि आठ पुत्र, परीक्षित के जनमेजय, जनमेजय के धृतराष्ट्र हुए, धृतराष्ट्र के के पुत्र प्रतीप हुए। परंतु आदि पर्व 95-39-44 के वर्णन के अनुसार कुरु से विदुर उनसे अनश्वा, अनश्वा से परिक्षित, परिक्षित से भीमसेन, भीमसेन से प्रतिश्रवा तथा प्रतिश्रवा से प्रतीप का जन्म कहा गया है।
  • राजा प्रतीप की पत्नी का नाम शैव्या सुनंदा था। इनके तीन पुत्र हुए देवापि, शान्तनु और बाह्लीक[2] इनके पास सुन्दर रूप तथा उत्तम गुणों से सम्पन्न युवती का रूप धारण कर गंगा आयी और इनके दाहिनी जाँघ पर जा बैठीं। इनके पूछने पर उन्होंने इनकी पत्नी बनने की इच्छा प्रकट की। तब इन्होंने उनका पुत्रवधू के रूप में वरण किया।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 332 |

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