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'''मांडवी''' [[अयोध्या]] के राजा [[दशरथ]] की पुत्रवधु और [[श्रीराम]] के भाई [[भरत]] की पत्नी थी। रामकाव्य में उसका चरित्र यद्यपि संक्षेप में ही है, पर वह पति-पारायणा एवं साध्वी नारी के रूप में चित्रित की गई है। उसके चरित्र के अनुराग-विराग एवं आशा-निराशा का विचित्र द्वन्द्व है। वह संयोगिनी होकर भी वियोगिनी सा जीवन व्यतीत करती है।‘साकेत-संत’ की वह नायिका है। वह कुल की मार्यादानुरूप आचरण करती है। वह भरत से एकनिष्ठ एवं समर्पण भाव से प्रेम करती है। वह कहती है-
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<blockquote>और मैं तुम्हें हृदय में थाप, बनूँगी अर्ध्य आरती आप ।<br />
मांडवी [[गुजरात]] के गिनेचुने समुद्र तटों में से एक है। सागरतटीय सुन्दरता के अलावा मांडवी की [[संस्कृति]] भी यहाँ का एक आकर्षण है। यह संस्कृति शेष गुजरात से एकदम अलग है। यहाँ जनजीवन में [[कच्छ]] संस्कृति का प्रभाव है। यही कारण है कि मांडवी की यात्रा कच्छ की यात्रा के बिना अधूरी मानी जाती है। दरअसल, कच्छ गुजरात का एक ज़िला है और [[कच्छ का रण]] इस धरती को प्रकृति का एक अद्वितीय उपहार है।
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विश्व की सारी कांति समेट, करूँगी एक तुम्हारी भेंट ।।<ref>साकेत, संत डॉ. मिश्र, प्रथम सर्ग, पृ. 26</ref></blockquote>
==इतिहास==
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माण्डवी भरत के सुख-दुःख की सहभागिनी है। उसका चरित्र पतिपरायणता, सेवाभावना और त्याग से ओत-प्रोत है। पति की व्यथित दशा देखकर वह कह उठती है कि- 
कच्छ की खाड़ी के बीच में स्थित मांडवी अपने मनोहरी [[समुद्र|समुद्र तटों]] के लिए गुजरात ही नहीं [[भारत]] भर में प्रसिद्ध है। सफेद बालू से सजा यह तट सैलानियों को खुला आमंत्रण देता है। इस नगर की स्थापना 1581 में कच्छ के जडेजा शासक ने की थी। उन्होंने इसे एक शानदार चारदीवारी से घिरा शहर बनाया था। उस समय मांडवी एक व्यावसायिक नगर के रूप में जाना जाता था। उस का कारण था यहाँ का समृद्ध बंदरगाह।
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<blockquote>नम्र स्वर में वह बोली ‘नाथ’! बटाऊँ कैसे दुःख में हाथ,<br />
मांडवी की समृद्धि का अनुमान इस बात से ही लगता है कि उस समय यहाँ के व्यापारियों के पास 400 पानी के जहाज होते थे। यही नहीं, यहाँ लकड़ी के जहाज बनाने का उद्योग स्थापित हो रुकमावती नदी कच्छ की खाड़ी में आ समाती है।
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बता दो यदि हो कहीं उपाय, टपाटप गिरे अश्रु असहाय ।।<ref> साकेत, संत डॉ. मिश्र, चतुर्थ सर्ग, पृ. 55</ref></blockquote>
==पर्यटन स्थल==
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[[श्यामसुन्दर दास|डॉ. श्यामसुन्दर दास]] के शब्दों में माण्डवी तापसी जीवन के कारण एक विशिष्ट व्यक्तित्व को ग्रहण किये हुए है और इसलिए हिन्दी महाकाव्यों के नारी पात्रों के मध्य में उसे अलग ही खोजा जा सकता है।<ref>हिन्दी महाकाव्यों में नारी चित्रण, पृ. 115</ref>
मांडवी के [[पर्यटन]] आकर्षण में पहला स्थान यहाँ के समुद्र तट का है। यह समुद्र तट दूर तक टहलने के लिए बेहद उपयुक्त है। समुद्र स्नान के लिहाज से एक सुरक्षित बीच होने के साथ-साथ यह तैराकी के लिए भी उपयुक्त माना जाता है। बीच के दूसरी ओर थोड़ी-थोड़ी दूर पर ताड़ के वृक्ष इस की ख़ूबसूरती को बढ़ाते हैं। गुजरात और [[राजस्थान]] से लोग पर्यटन के लिए यहाँ आते हैं।
 
====विजय विलास पैलेस====
 
विजय विलास पैलेस मांडवी का दूसरा आकर्षण है। एक समय यह कच्छ के महाराजाओं का महल था। जिसे उन्होंने गरमी के लिए बनवाया था। [[ओरछा]] और दतिया के महलों की शैली में बने इस महल में [[चित्रकला राजपूत शैली |राजपूत शैली]] का भी पूरा प्रभाव है। सुन्दर उद्यान, जलधाराएं इसे एक अनोखा वैभव प्रदान करती हैं।
 
====अन्य आर्कषण====
 
रुकमावती  नदी पर पत्थर का बना सब से लंबा पुल भी दर्शनीय है। 1883 में बना अपनी तरह का यह भारत में एकमात्र पुल है।
 
मांडवी से कुछ दूर 'विंड फार्म बीच' भी एक सुन्दर और शांत सागरतट है। 'विंड फार्म बीच' पर सैलानियों को एक ओर सागर की अथाह जलराशि नजर आती है तो दूसरी ओर उन्हें सैकड़ों पवनचक्कियाँ कतार में खड़ी नजर आती हैं। समुद्री हवाओं से निरंतर घूमते इन के टरबाइन  इस क्षेत्र के लिए [[ऊर्जा]] उत्पन्न करते हैं। मांडवी बीच से भी ये टरबाइन नजर आती हैं।
 
 
 
  
  
 
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Disamb2.jpg मांडवी एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- मांडवी (बहुविकल्पी)

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मांडवी अयोध्या के राजा दशरथ की पुत्रवधु और श्रीराम के भाई भरत की पत्नी थी। रामकाव्य में उसका चरित्र यद्यपि संक्षेप में ही है, पर वह पति-पारायणा एवं साध्वी नारी के रूप में चित्रित की गई है। उसके चरित्र के अनुराग-विराग एवं आशा-निराशा का विचित्र द्वन्द्व है। वह संयोगिनी होकर भी वियोगिनी सा जीवन व्यतीत करती है।‘साकेत-संत’ की वह नायिका है। वह कुल की मार्यादानुरूप आचरण करती है। वह भरत से एकनिष्ठ एवं समर्पण भाव से प्रेम करती है। वह कहती है-

और मैं तुम्हें हृदय में थाप, बनूँगी अर्ध्य आरती आप ।
विश्व की सारी कांति समेट, करूँगी एक तुम्हारी भेंट ।।[1]

माण्डवी भरत के सुख-दुःख की सहभागिनी है। उसका चरित्र पतिपरायणता, सेवाभावना और त्याग से ओत-प्रोत है। पति की व्यथित दशा देखकर वह कह उठती है कि- 

नम्र स्वर में वह बोली ‘नाथ’! बटाऊँ कैसे दुःख में हाथ,
बता दो यदि हो कहीं उपाय, टपाटप गिरे अश्रु असहाय ।।[2]

डॉ. श्यामसुन्दर दास के शब्दों में माण्डवी तापसी जीवन के कारण एक विशिष्ट व्यक्तित्व को ग्रहण किये हुए है और इसलिए हिन्दी महाकाव्यों के नारी पात्रों के मध्य में उसे अलग ही खोजा जा सकता है।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. साकेत, संत डॉ. मिश्र, प्रथम सर्ग, पृ. 26
  2. साकेत, संत डॉ. मिश्र, चतुर्थ सर्ग, पृ. 55
  3. हिन्दी महाकाव्यों में नारी चित्रण, पृ. 115

संबंधित लेख

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