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भारतवर्ष मे अप्सरा और गंधर्व का सहचर्य नितांत घनिष्ठ है। अपनी व्युत्पति के अनुसार ही अप्सरा<ref>अप्सु सरत्ति गच्छतीति अप्सरा:</ref> [[जल]] में रहने वाली मानी जाती है। [[अथर्ववेद]] तथा [[यजुर्वेद]] के अनुसार ये पानी में रहती हैं इसलिए कहीं-कहीं मनुष्यों को छोड़कर नदियों और जल-तटों पर जाने के लिए उनसे कहा गया है। यह इनके बुरे प्रभाव की ओर संकेत है। [[शतपथ ब्राह्मण]] में<ref>शतपथ ब्राह्मण 11/5/1/4</ref> ये तालाबों मे पक्षियों के रूप में तैरने वाली चित्रित की गई हैं और पिछले साहित्य में ये निश्चित रूप से जंगली जलाशयों में, नदियों में, समुद्र के भीतर [[वरुण]] के महलों मे भी रहने वाली मानी गई हैं । जल के अतिरिक्त इनका संबंध वृक्षों से भी हैं। अथर्ववेद<ref>अथर्ववेद 4।37।4</ref> के अनुसार ये अश्वत्थ तथा न्यग्रोध वृक्षों पर रहती हैं जहाँ ये झूले में झूला करती हैं और इनके मधुर [[वाद्य यंत्र|वाद्यों]] (कर्करी) की मीठी [[ध्वनि]] सुनी जाती है। ये नाच गान तथा खेलकूद में निरंत होकर अपना मनोविनोद करती हैं। [[ऋग्वेद]] में [[उर्वशी]] प्रसिद्ध अप्सरा मानी गई है।<ref>ऋग्वेद 10/95</ref>
 
भारतवर्ष मे अप्सरा और गंधर्व का सहचर्य नितांत घनिष्ठ है। अपनी व्युत्पति के अनुसार ही अप्सरा<ref>अप्सु सरत्ति गच्छतीति अप्सरा:</ref> [[जल]] में रहने वाली मानी जाती है। [[अथर्ववेद]] तथा [[यजुर्वेद]] के अनुसार ये पानी में रहती हैं इसलिए कहीं-कहीं मनुष्यों को छोड़कर नदियों और जल-तटों पर जाने के लिए उनसे कहा गया है। यह इनके बुरे प्रभाव की ओर संकेत है। [[शतपथ ब्राह्मण]] में<ref>शतपथ ब्राह्मण 11/5/1/4</ref> ये तालाबों मे पक्षियों के रूप में तैरने वाली चित्रित की गई हैं और पिछले साहित्य में ये निश्चित रूप से जंगली जलाशयों में, नदियों में, समुद्र के भीतर [[वरुण]] के महलों मे भी रहने वाली मानी गई हैं । जल के अतिरिक्त इनका संबंध वृक्षों से भी हैं। अथर्ववेद<ref>अथर्ववेद 4।37।4</ref> के अनुसार ये अश्वत्थ तथा न्यग्रोध वृक्षों पर रहती हैं जहाँ ये झूले में झूला करती हैं और इनके मधुर [[वाद्य यंत्र|वाद्यों]] (कर्करी) की मीठी [[ध्वनि]] सुनी जाती है। ये नाच गान तथा खेलकूद में निरंत होकर अपना मनोविनोद करती हैं। [[ऋग्वेद]] में [[उर्वशी]] प्रसिद्ध अप्सरा मानी गई है।<ref>ऋग्वेद 10/95</ref>
  
[[पुराण|पुराणों]] के अनुसार तपस्या मे लगे हुए तापस मुनियों को समाधि से हटाने के लिए [[इंद्र]] अप्सरा को अपना सुकुमार, परंतु मोहक प्रहरण बनाते हैं। इंद्र की सभा में अप्सराओं का [[नृत्य कला|नृत्य]] और गायन सतत आह्लाद का साधन है। घृताची, [[रंभा]], उर्वशी, तिलोत्तमा, [[मेनका]], कुंडा आदि अप्सराएँ अपने सौंदर्य और प्रभाव के लिए पुराणों मे काफ़ी प्रसिद्ध हैं। [[इस्लाम]] में भी स्वर्ग में इनकी स्थिति मानी जाती है। [[फारसी भाषा|फारसी]] का 'हूरी' शब्द [[अरबी भाषा|अरबी]] 'हवरा'<ref>कृष्णलोचना कुमारी)</ref> के साथ संबद्ध बतलाया जाता है।
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अप्सरा नितांत रूपवती स्त्री के रूप मे चित्रित की गई हैं। यूनानी ग्रंथों मे अप्सराओं को सामान्यत: 'निफ' नाम दिया गया है। ये तरुण, सुंदर, अविवाहित, कमर तक वस्त्र से आच्छादित, और हाथ मे पानी से भरे हुआ पात्र लिए स्त्री के रूप मे चित्रित की गई हैं।

भारतवर्ष मे अप्सरा और गंधर्व का सहचर्य नितांत घनिष्ठ है। अपनी व्युत्पति के अनुसार ही अप्सरा[1] जल में रहने वाली मानी जाती है। अथर्ववेद तथा यजुर्वेद के अनुसार ये पानी में रहती हैं इसलिए कहीं-कहीं मनुष्यों को छोड़कर नदियों और जल-तटों पर जाने के लिए उनसे कहा गया है। यह इनके बुरे प्रभाव की ओर संकेत है। शतपथ ब्राह्मण में[2] ये तालाबों मे पक्षियों के रूप में तैरने वाली चित्रित की गई हैं और पिछले साहित्य में ये निश्चित रूप से जंगली जलाशयों में, नदियों में, समुद्र के भीतर वरुण के महलों मे भी रहने वाली मानी गई हैं । जल के अतिरिक्त इनका संबंध वृक्षों से भी हैं। अथर्ववेद[3] के अनुसार ये अश्वत्थ तथा न्यग्रोध वृक्षों पर रहती हैं जहाँ ये झूले में झूला करती हैं और इनके मधुर वाद्यों (कर्करी) की मीठी ध्वनि सुनी जाती है। ये नाच गान तथा खेलकूद में निरंत होकर अपना मनोविनोद करती हैं। ऋग्वेद में उर्वशी प्रसिद्ध अप्सरा मानी गई है।[4]

पुराणों के अनुसार तपस्या मे लगे हुए तापस मुनियों को समाधि से हटाने के लिए इंद्र अप्सरा को अपना सुकुमार, परंतु मोहक प्रहरण बनाते हैं। इंद्र की सभा में अप्सराओं का नृत्य और गायन सतत आह्लाद का साधन है। घृताची, रंभा, उर्वशी, तिलोत्तमा, मेनका, कुंडा आदि अप्सराएँ अपने सौंदर्य और प्रभाव के लिए पुराणों मे काफ़ी प्रसिद्ध हैं। इस्लाम में भी स्वर्ग में इनकी स्थिति मानी जाती है। फारसी का 'हूरी' शब्द अरबी 'हवरा'[5] के साथ संबद्ध बतलाया जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अप्सु सरत्ति गच्छतीति अप्सरा:
  2. शतपथ ब्राह्मण 11/5/1/4
  3. अथर्ववेद 4।37।4
  4. ऋग्वेद 10/95
  5. कृष्णलोचना कुमारी

बाहरी कड़ियाँ

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