अजपार्श्व

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अजपार्श्व श्वेतकर्ण और मालिनी के पुत्र थे। इनके शरीर का पार्श्व हिस्सा बकरे के समान काला पड़ गया था, इसीलिए इनका नाम 'अजपार्श्व' पड़ा। पुराणों में अजपार्श्व के सन्दर्भ में निम्न दो प्रसंग प्राप्त होते हैं-

प्रथम प्रसंग

परीक्षित कुमार जनमेजय की पत्नी ने दो पुत्रों को जन्म दिया। उनके नाम 'चंद्रापीड' तथा 'सूर्यापीड' थे। चंद्रापीड के सौ पुत्र थे, वे सब 'जानमेजय' नाम से विख्यात हुए। सूर्यापीड मोक्षधर्म के ज्ञाता हुए। जानमेजय में सबसे बड़े का नाम 'सत्यकर्ण' था। उसके पुत्र श्वेतकर्ण तपोवन चले गये थे। वहाँ उसकी पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। वह पुत्र को वन में ही छोड़कर पति का अनुसरण करती हुई महाप्रस्थान की ओर अग्रसर हुई। जंगल में राजकुमार के छटपटाने से उसका पार्श्वभाग छिलकर बकरे की पार्श्व की भाँति काला और सख्त हो गया। अत: उसका नाम 'अजपार्श्व' पड़ा। उस रोते हुए बालक को अविष्ठा के दोनों पुत्रों 'पिप्पलाद' और 'कौशिक' ने उठा लिया तथा लालन-पालन किया।[1]

द्वितीय प्रसंग

जनमेजयवंशीय राजा श्वेतकर्ण[2] पुत्र की इच्छा से पत्नी सहित तपोवन चले गए। पत्नी के गर्भवती होने के उपरान्त उन्होंने स्वर्ग की यात्रा आरम्भ की। पत्नी मालिनी ने भी उनका अनुसरण किया। मार्ग में जन्में बालक को वहीं वन में छोड़कर वह पति की अनुगामिनी हुई। बालक के दोनों पार्श्व पर्वत शिला पर घिसकर लहूलुहान हो गये। उधर से जाते हुए श्रवण के पुत्रों पिप्पलाद और कौशिक ने बालक को उठा लिया। बालक के पार्श्व का रंग बकरे के समान काला पड़ा हुआ था, अत: वह 'अजपार्श्व' के नाम से विख्यात हुआ। रेमन मुनि के आश्रम में उसका लालन-पालन हुआ। वह रेमनी पुत्र[3] बन गया। दोनों ब्राह्मण उसके मंत्री बने। वह पौरव वंशी था। पांडव आदि का जन्म भी इसी वंश में हुआ था।[4]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय मिथक कोश |लेखक: डॉ. उषा पुरी विद्यावाचस्पति |प्रकाशक: नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 08 |

  1. हरिवंशपुराण, भविष्य पर्व, 1
  2. सत्यकर्ण के पुत्र
  3. रेमन की पत्नी का पुत्र
  4. ब्रह्मपुराण, 13|125-140|-

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