वररुचि कात्यायन पाणिनिसूत्रों के प्रसिद्ध वार्त्तिककार थे। 'कथासरित्सागर' के अनुसार यह बचपन से ही बड़े बुद्धिमान थे। इनसे प्रतिस्पर्धा करके पाणिनि ने शंकर को प्रसन्न किया और इनको परास्त किया।
- ये नौ शुल्ब सूत्रों में से एक के रचयिता भी थे। पुरुषोत्तमदेव ने अपने रिकांडशेष अभिधानकोशमें कात्यायन के ये नाम लिखे हैं - 'कात्य', 'पुनर्वसु', 'मेधाजित्' और 'वररुचि'।
- 'कात्य' नाम गोत्रप्रत्यांत है, 'महाभाष्य' में उसका उल्लेख है। पुनर्वसु नाम नक्षत्र संबंधी है, 'भाषावृत्ति' में पुनर्वसु को वररुचि का पर्याय कहा गया है। मेधाजित् का कहीं अन्यत्र उल्लेख नहीं मिलता। इसके अतिरिक्त, 'कथासरित्सागर' और 'बृहत्कथामंजरी' में कात्यायन वररुचि का एक नाम 'श्रुतधर' भी आया है। हेमचंद्र एवं मेदिनी कोशों में भी कात्यायन के 'वररुचि' नाम का उल्लेख है।
- वररुचि कात्यायन के वार्तिक पाणिनीय व्याकरण के लिए अति महत्वशाली सिद्ध हुए हैं। इन वार्तिकों के बिना पाणिनीय व्याकरण अधूरा-सा रहा जाता। वार्तिकों के आधार पर ही पीछे से पतंजलि ने महाभाष्य की रचना की।
इन्हें भी देखें: कात्यायन, कात्यायन (विश्वामित्रवंशीय) एवं कात्यायन (गोमिलपुत्र)
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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