राग रामकली अब तो निभायाँ[1] सरेगी[2], बांह गहेकी लाज। समरथ सरण तुम्हारी सइयां, सरब सुधारण काज॥ भवसागर संसार अपरबल[3], जामें तुम हो झयाज[4]। निरधारां[5] आधार जगत् गुरु तुम बिन होय अकाज॥ जुग जुग भीर हरी भगतन की, दीनी मोच्छ समाज। मीरां सरण गही चरणन की, लाज रखो महाराज॥