हरि बिन ना सरै[1] री माई।
मेरा प्राण निकस्या जात, हरी बिन ना सरै माई।
मीन दादुर[2] बसत जल में, जल से उपजाई॥
तनक जल से बाहर कीना तुरत मर जाई।
कान लकरी[3] बन परी काठ धुन खाई।
ले अगन[4] प्रभु डार आये भसम हो जाई॥
बन बन ढूंढत मैं फिरी माई सुधि नहिं पाई।
एक बेर दरसण दीजे सब कसर मिटि जाई॥
पात[5] ज्यों पीली पड़ी अरु बिपत तन छाई।
दासि मीरा लाल गिरधर मिल्या सुख छाई[6]॥