राग सिंध भैरवी म्हांरे घर होता जाज्यो[1] राज। अबके जिन टाला[2] दे जाओ, सिर पर राखूं बिराज॥ म्हे[3] तो जनम जनम की दासी, थे[4] म्हांका[5] सिरताज। पावणडा[6] म्हांके भलां ही पधार्या, सब ही सुधारण काज॥ म्हे तो बुरी छां[7] थांके भली छै, घणोरी[8] तुम हो एक रसराज। थांने हम सब ही की चिंता, (तुम) सबके हो ग़रीबनिवाज॥ सबके मुगट सिरोमणि सिरपर, मानीं पुन्यकी पाज।[9] मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बांह गहेकी लाज॥