राग प्रभाती
जागो म्हांरा जगपतिरायक हंस बोलो क्यूं नहीं॥
हरि छो[1] जी हिरदा माहिं पट खोलो क्यूं नहीं॥
तन मन सुरति संजोइ सीस चरणां धरूं।
जहां जहां देखूं म्हारो राम तहां सेवा करूं॥
सदकै[2] करूं जी सरीर जुगै जुग वारणैं[3]।
छोड़ी छोड़ी लिखूं सिलाम[4] बहोत करि जानज्यौ।
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नाम रहित संदर्भों में जानकारी देना आवश्यक है हूं खानाजाद[5] महरि[6] करि मानज्यौ[7]॥
हां हो म्हारा नाथ सुनाथ बिलम नहिं कीजिये।
मीरा चरणां की दासि दरस फिर दीजिये॥