रमइया बिन यो जिवडो[1] दु:ख पावै।
कहो कुण धीर बंधावै॥
यो संसार कुबुधि[2] को भांडो[3], साध संगत नहीं भावै।
राम-नाम की निंद्या ठाणै, करम ही करम कुमावै[4]॥
राम-नाम बिन मुकति न पावै, फिर चौरासी[5] जावै।
साध संगत में कबहुं न जावै, मूरख जनम गुमावै॥
मीरा प्रभु गिरधर के सरणै, जीव परमपद पावै॥