राग नीलांबरी
सूरत दीनानाथ से लगी तू तो समझ सुहागण सुरता नार[1]॥
लगनी[2] लहंगो पहर सुहागण, बीतो जाय बहार।
धन जोबन है पावणा[3] रो, मिलै न दूजी बार॥
राम नाम को चुड़लो[4] पहिरो, प्रेम को सुरमो सार।
नकबेसर हरि नाम की री, उतर चलोनी परलै[5] पार॥
ऐसे बर को क्या बरूं, जो जनमें औ मर जाय।
वर वरिये इक सांवरो री, चुड़लो लगनी अमर होय जाय॥
मैं जान्यो हरि मैं ठग्यो री, हरि ठगि ले गयो मोय।
लख चौरासी मोरचा री, छिन में गेर्या छे बिगोय[6]॥
सुरत[7] चली जहां मैं चली री, कृष्ण नाम झणकार।
अविनासी की पोल[8] मरजी मीरा करै छै पुकार॥