राग दरबारी कान्हरा पिय बिन सूनो[1] छै[2] जी म्हारो देस[3]॥ ऐसो है कोई पिवकूं मिलावै, तन मन करूं सब पेस[4]। तेरे कारण बन बन डोलूं, कर जोगण को भेस॥ अवधि बदीती[5] अजहूं न आए, पंडर[6] हो गया केस। रा के प्रभु कब र मिलोगे, तज दियो नगर नरेस[7]॥