राग गूजरी
कुण[1] बांचे पाती[2] बिना प्रभु कुण बांचे पाती।
कागद ले ऊधोजी आयो, कहां रह्या साथी।[3]
आवत जावत पांव घिस्या[4] रे (वाला) अंखिया भई राती॥[5]
कागद ले राधा वांचण बैठी, (वाला) भर आई छाती।
नैण नीरज में अम्ब[6] बहे रे (बाला) गंगा बहि जाती॥
पाना ज्यूं पीली पड़ी रे (वाला) धान नहीं खाती।
हरि बिन जिवणो यूं जलै रे (वाला) ज्यूं दीपक संग बाती॥
मने भरोसो रामको रे (वाला) डूब तिर्यो हाथी।
दासि मीरा लाल गिरधर, सांकडारो साथी॥