राग कोसी म्हारी सुध ज्यूं जानो त्यूं लीजो॥ पल पल ऊभी[1] पंथ निहारूं, दरसण म्हाने[2] दीजो। मैं तो हूं बहु औगुणवाली, औगण[3] सब हर लीजो॥ मैं तो दासी थारे चरण कंवल[4] की, मिल बिछड़न मत कीजो। मीरा के प्रभु गिरधर नागर, हरि चरणां चित दीजो॥