लक्ष्मण धीरे चलो मैं हारी॥ध्रु०॥ रामलक्ष्मण दोनों भीतर। बीचमें सीता प्यारी॥1॥ चलत चलत मोहे छाली पड गये। तुम जीते मैं हारी॥2॥ मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलिहारी॥3॥