राग बिहाग स्याम मोरी बांहड़ली जी गहो। या भवसागर मंझधार में थे[1] ही निभावण हो॥ म्हाने औगण घणा रहै[2] प्रभुजी थे ही सहो तो सहो। मीरा के प्रभु हरि अबिनासी लाज बिरद की बहो[3]॥