राग भांड
नातो नामको जी म्हांसूं[1] तनक न तोड्यो जाय॥
पानां ज्यूं[2] पीली पड़ी रे, लोग कहैं पिंड रोग[3]।
छाने[4] लांघण[5] म्हैं किया रे, राम मिलण के जोग॥
बाबल[6] बैद बुलाइया रे, पकड़ दिखाई म्हांरी बांह।
मूरख बैद मरम नहिं जाणे, कसक[7] कलेजे मांह॥
जा बैदां, घर आपणे रे, म्हांरो नांव न लेय।
मैं तो दाझी[8] बिरहकी रे, तू काहेकूं दारू देय॥
मांस गल गल छीजिया[9] रे, करक रह्या गल आहि।
आंगलिया री मूदड़ी[10] (म्हारे) आवण लागी बांहि[11]॥
रह रह पापी पपीहडा रे,पिवको नाम न लेय।
जै कोई बिरहण साम्हले[12] तो, पिव कारण जिव देय॥
खिण[13] मंदिर खिण आंगणे रे, खिण खिण ठाड़ी होय।
घायल ज्यूं घूमूं खड़ी, म्हारी बिथा न बूझै कोय॥
काढ़ कलेजो मैं धरू रे, कागा तू ले जाय।
ज्यां देसां[14] म्हारो पिव बसै रे, वे देखै तू खाई[15]॥
म्हांरे नातो नांवको रे, और न नातो कोय।
मीरा ब्याकुल बिरहणी रे, (हरि) दरसण दीजो मोय॥