राग कामोद बरजी मैं काहूकी नाहिं रहूं। सुणो री सखी तुम चेतन होयकै मनकी बात कहूं॥ साध संगति कर हरि सुख लेऊं जगसूं दूर रहूं। तन धन मेरो सबही जावो भल मेरो सीस लहूं॥ मन मेरो लागो सुमरण सेती सबका मैं बोल सहूं। मीरा के प्रभु हरि अविनासी सतगुर सरण गहूं॥