राग जौनपुरी सखी री लाज बैरण [1] भई। श्रीलाल गोपालके संग काहें नाहिं गई॥ कठिन क्रूर अक्रूर आयो साज रथ कहं नई [2]। रथ चढ़ाय गोपाल ले गयो हाथ मींजत रही॥ कठिन छाती स्याम बिछड़त बिरहतें तन तई [3] । दासि मीरा लाल गिरधर बिखर क्यूं ना गई॥