राग धानी री[1], मेरे पार[2] निकस गया सतगुर मार्या तीर[3]। बिरह-भाल लगी उर अंदर, व्याकुल भया सरीर॥ इत उत चित्त चलै नहिं[4] कबहूं, डारी[5] प्रेम-जंजीर। कै जाणै मेरो प्रीतम प्यारो, और न जाणै पीर॥ कहा करूं मेरों बस नहिं सजनी, नैन झरत दोउ नीर[6]। मीरा कहै प्रभु तुम मिलियां बिन प्राण धरत नहिं धीर॥