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राग दरबारी-ताल तिताला तुम सुणौ दयाल म्हारी[1] अरजी॥ भवसागर में बही जात हौं, काढ़ो[2] तो थारी मरजी। इण[3] संसार सगो नहिं कोई, सांचा सगा रघुबरजी॥ मात पिता औ कुटुम कबीलो सब मतलब के गरजी[4]। मीरा की प्रभु अरजी सुण लो चरण लगाओ थारी[5] मरजी॥