मोरी लागी लटक गुरु चरणकी॥ध्रु०॥ चरन बिना मुज कछु नहीं भावे। झूंठ माया सब सपनकी॥1॥ भवसागर सब सुख गयी है। फिकीर नहीं मुज तरुणोनकी॥2॥ मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। उलट भयी मोरे नयननकी॥3॥