राग तिलक कामोद छोड़ मत जाज्यो जी महाराज॥ मैं अबला बल नायं[1] गुसाईं, तुमही मेरे सिरताज। मैं गुणहीन गुण नांय गुसाईं, तुम समरथ महाराज॥ थांरी[2] होयके किणरे[3] जाऊं, तुमही हिबडारो[4] साज। मीरा के प्रभु और न कोई राखो अबके लाज॥