हरि गुन गावत नाचूंगी॥ध्रु०॥ आपने मंदिरमों बैठ बैठकर। गीता भागवत बाचूंगी॥1॥ ग्यान ध्यानकी गठरी बांधकर। हरीहर संग मैं लागूंगी॥2॥ मीराके प्रभु गिरिधर नागर। सदा प्रेमरस चाखुंगी॥3॥