राग झंझोटी
भज ले रे मन, गोपाल-गुना[1]॥
अधम तरे अधिकार भजनसूं, जोइ आये हरि-सरना।
अबिसवास तो साखि[2] बताऊं, अजामील गणिका सदना[3]॥
जो कृपाल तन मन धन दीन्हौं, नैन नासिका मुख रसना[4]।
जाको रचत मास दस लागै, ताहि न सुमिरो एक छिना[5]॥
बालापन सब खेल गमायो, तरुण भयो जब रूप घना[6]।
वृद्ध भयो जब आलस उपज्यो, माया-मोह भयो मगना॥
गज अरु गीधहु[7] तरे भजनसूं कोउ तर्यो नहिं भजन बिना।
धना[8] भगत पीपामुनि सिवरी[9], मीराकीहू करो गणना॥