राग बागेश्री मैं बिरहणि[1] बैठी जागूं जगत् सब सोवे री आली॥ बिरहणी बैठी रंगमहल में, मोतियन की लड़ पोवै[2]| इक बिहरणि हम ऐसी देखी, अंसुवन की माला पोवै॥ तारा गिण गिण रैण[3] बिहानी[4], सुख की घड़ी कब आवै। मीरा के प्रभु गिरधर नागर, जब मोहि दरस दिखावै॥