कुंजबनमों गोपाल राधे॥ध्रु०॥ मोर मुकुट पीतांबर शोभे। नीरखत शाम तमाल॥1॥ ग्वालबाल रुचित चारु मंडला। वाजत बनसी रसाळ॥2॥ मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनपर मन चिरकाल॥3॥