राग हमीर
आओ सहेल्हां रली करां[1] है पर घर गवण[2] निवारि॥
झूठा माणिक मोतिया री झूठी जगमग जोति।
झूठा आभूषण री, सांची पियाजी री प्रीति॥
झूठा पाट पटंबरा रे, झूठा दिखडणी[3] चीर[4]।
सांची पियाजी री गूदड़ी, जामें निरमल रहे सरीर॥
छपन भोग बुहाय देहे[5] इण भोगन में दाग[6]।
लूण अलूणो[7] ही भलो है अपणे पियाजीरो साग॥
देखि बिराणे[8] निवांणकूं[9] है क्यूं उपजावे खीज[10]।
कालर अपणो ही भलो है, जामें निपजै चीज॥
छैल बिराणो लाखको[11] है अपणे काज न होय।
ताके संग सीधारतां है भला न कहसी कोय॥
बर हीणो अपणो भलो है कोढी कुष्टी कोय।
जाके संग सीधारतां है भला कहै सब लोय॥
अबिनासीसूं बालबा[12] हे जिनसूं सांची प्रीत।
मीरा कूं प्रभुजी मिल्या है ए ही भगतिकी रीत॥