राग मिश्र काफी- ताल तिताला अब तौ हरी नाम लौ लागी। सब जगको यह माखनचोरा, नाम धर्यो बैरागीं॥ कित छोड़ी वह मोहन मुरली, कित छोड़ी सब गोपी। मूड़ मुड़ाइ डोरि कटि बांधी, माथे मोहन टोपी॥ मात जसोमति माखन-कारन, बांधे जाके पांव। स्यामकिसोर भयो नव गौरा, चैतन्य जाको नांव॥ पीतांबर को भाव दिखावै, कटि कोपीन कसै। गौर कृष्ण की दासी मीरा, रसना कृष्ण बसै॥