राग धानी सांवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो[1] जी॥ थे छो[2] म्हारा गुण रा सागर, औगण[3] म्हारूं मति जाज्यो[4] जी। लोकन धीजै (म्हारो) मन न पतीजै[5], मुखडारा[6] सबद सुणाज्यो जी॥ मैं तो दासी जनम जनम की, म्हारे आंगणा रमता आज्यो[7] जी। मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बेड़ो पार लगाज्यो जी॥