प्रगट भयो भगवान॥ध्रु०॥ नंदाजीके घर नौबद बाजे। टाळ मृदंग और तान॥1॥ सबही राजे मिलन आवे। छांड दिये अभिमान॥2॥ मीराके प्रभु गिरिधर नागर। निशिदिनीं धरिजे ध्यान॥3॥