राग कजरी म्हारा ओलगिया[1] घर आया जी। तन की ताप मिटी सुख पाया, हिल मिल मंगल गाया जी॥ घन की धुनि[2] सुनि मोर मगन भया, यूं मेरे आनंद छाया जी। मग्न भई मिल प्रभु अपणा सूं, भौका दरद[3] मिटाया जी॥ चंद कूं निरखि कमोदणि[4] फूलैं, हरषि भया मेरे काया जी। रग रग सीतल भई मेरी सजनी, हरि मेरे महल सिधाया[5] जी॥ सब भगतन का कारज कीन्हा, सोई प्रभु मैं पाया जी। मीरा बिरहणि सीतल होई दु:ख दंद[6] दूर नसाया[7] जी॥