नैना निपट बंकट छबि अटके। देखत रूप मदनमोहन को, पियत पियूख न मटके। बारिज भवाँ अलक टेढी मनौ, अति सुगंध रस अटके॥ टेढी कटि, टेढी कर मुरली, टेढी पाग लट लटके। 'मीरा प्रभु के रूप लुभानी, गिरिधर नागर नट के॥