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मोरी लागी लटक गुरु चरणकी॥ध्रु०॥
मोरी लागी लटक गुरु चरणकी॥ध्रु०॥
चरन बिना मुज कछु नहीं भावे। झूंठ माया सब सपनकी॥1॥
चरन बिना मुज कछु नहीं भावे। झूंठ माया सब सपनकी॥1॥
भवसागर सब सुख गयी है। फिकीर नहीं मुज तरुणोनकी॥२॥
भवसागर सब सुख गयी है। फिकीर नहीं मुज तरुणोनकी॥2॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। उलट भयी मोरे नयननकी॥३॥  
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। उलट भयी मोरे नयननकी॥३॥  



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मोरी लागी लटक गुरु चरणकी -मीरां
मीरांबाई
मीरांबाई
कवि मीरांबाई
जन्म 1498
जन्म स्थान मेरता, राजस्थान
मृत्यु 1547
मुख्य रचनाएँ बरसी का मायरा, गीत गोविंद टीका, राग गोविंद, राग सोरठ के पद
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
मीरांबाई की रचनाएँ

मोरी लागी लटक गुरु चरणकी॥ध्रु०॥
चरन बिना मुज कछु नहीं भावे। झूंठ माया सब सपनकी॥1॥
भवसागर सब सुख गयी है। फिकीर नहीं मुज तरुणोनकी॥2॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। उलट भयी मोरे नयननकी॥३॥

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