"पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो -मीरां": अवतरणों में अंतर

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पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो।
पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो।


वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरू, किरपा कर अपनायो॥
वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरु, किरपा कर अपनायो॥


जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।
जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।
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खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो॥
खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो॥


सत की नाँव खेवटिया सतगुरू, भवसागर तर आयो।
सत की नाँव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।


'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस पायो॥  
'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस पायो॥  

14:47, 16 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

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पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो -मीरां
मीरांबाई
मीरांबाई
कवि मीरांबाई
जन्म 1498
जन्म स्थान मेरता, राजस्थान
मृत्यु 1547
मुख्य रचनाएँ बरसी का मायरा, गीत गोविंद टीका, राग गोविंद, राग सोरठ के पद
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
मीरांबाई की रचनाएँ

पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो।

वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरु, किरपा कर अपनायो॥

जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।

खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो॥

सत की नाँव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।

'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस पायो॥

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