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*यह [[लंका]] के राजा [[रावण]] का मामा, सुण्ड एवं [[ताड़का]] का पुत्र था।
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{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=सुबाहु|लेख का नाम=सुबाहु (बहुविकल्पी)}}
*[[मारीच]] का भाई था। सुबाहु-वध के अवसर पर [[राम]] ने इसे अपने बाण से लंका पहुँचा दिया था। [[सीता]]-हरण के अवसर पर रावण ने मारीच की मायावी बुद्धि की सहायता ली।
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== सुबाहु वाल्मीकि रामायण में==
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'''सुबाहु''' [[हस्तिनापुर]] के [[धृतराष्ट्र|राजा धृतराष्ट्र]] का [[पुत्र]] था। वह सौ [[कौरव|कौरवों]] में से एक था।
एक बार [[अयोध्या]] में [[गाधि]]-पुत्र मुनिवर [[विश्वामित्र]] पधारे। उमका सुचारू आतिध्य कर [[दशरथ]] ने अपेक्षित आज्ञा जानने की उन्होंने एक व्रत की दीक्षा ली है। इससे पूर्व भी वे अनेक व्रतो की दीक्षा लेते रहे किंतु समाप्ति के अवसर पर उनकी यज्ञवेदी पर रुधिर, मांस इत्यादि फेंककर मारीच और सुबाहु नामक दो राक्षस विघ्न उत्पन्न करते है। व्रत के, नियमानुसार वे किसी को शाप नहीं दे सकते, अतः उनका नाश करने के लिए वे दशरथी राम को साथ ले जाना चाहते है। राम की आयु पंद्रह वर्ष थी। दशरथ के शंका करने पर के वह अभी बालक ही है, विश्वामित्र ने उन्हें सुरक्षित रखने का आश्वासन दिया तथा राम और [[लक्ष्मण]] को साथ ले गये। मार्ग में उन्होंने राम को ‘बला-अतिचला’ नामक दो विद्याएं सिखायीं, जिमसे भूख, प्यास, थकान, रोग का अनुभव तथा असावधानता में शत्रु का वार इत्यादि नहीं हो पाता। <ref>वाल्मीकि रामायण, बाल कांड, सर्ग 18, 36-53,  सर्ग, 19 से 22 तक,  वाल्मीकि रामायण, बाल कांड, सर्ग 40, श्लोक 1-30,वाल्मीकि रामायण, बाल अरण्य कांड, सर्ग 38, श्लोक 1-22</ref>
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==यज्ञ की निविघ्नता==                                     
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जब [[महाभारत]] के युद्ध में [[पांडु]] पुत्र [[युधिष्ठिर]] के हित के लिये प्रयत्‍न करने वाले भरतवंशी महारथी [[युयुत्सु]] को सुबाहु ने प्रयत्‍नपूर्वक [[द्रोणाचार्य]] की ओर आने से रोक दिया, तब युयुत्‍सु ने प्रहार करते हुए सुबाहु की परिघ के समान मोटी एवं धनुष बाणों से युक्‍त दोनों भुजाओं को अपने तीखे और पानीदार दो छूरों द्वारा काट गिराया।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=महाभारत द्रोण पर्व|लेखक=|अनुवादक=साहित्याचार्य पण्डित रामनारायणदत्त शास्त्री पाण्डेय 'राम'|आलोचक= |प्रकाशक=गीताप्रेस, गोरखपुर|संकलन=भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन=|पृष्ठ संख्या=3175|url=}}</ref>
यज्ञ की निविघ्नता के लिए राम और लक्ष्मण ने छः दिन तक रात-दिन पहरा देने का निश्चय किया। विश्वामित्र का यज्ञ सिद्धाश्रम में चल रहा था। पांच दिन और रात बीतने के उपरांत अचानक उन्होंने देखा कि यज्ञ वेदी पर सब ओर से आग जलने लगी है— पुरोहित भी जलने लगा है और रुधिर की वर्षा हो रही है। आकाश में मारीच और सुबाहु को देख राम-लक्ष्मण ने युद्ध आरंभ किया। मारीच के अतिरिक्त सभी राक्षस तथा उनके साथियों को मार डाला तथा राम ने मारीच को मानवास्त्र के द्वारा उड़ाकर सौ [[योजन]] दूर एक समुन्द्र में फेंक दिया, जहां वह छाती पर लगे मानवास्त्र के कारण बेहोश होकर जा गिरा। लक्ष्मण ने आग्नेय शास्त्र से सुबाहु को घायल कर दिया तथा वायव्य अस्त्र से शेष राक्षसों को उड़ा दिया। <ref>वाल्मीकि रामायण, बाल कांड, सर्ग 29,30,</ref>
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Disamb2.jpg सुबाहु एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- सुबाहु (बहुविकल्पी)

सुबाहु हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र का पुत्र था। वह सौ कौरवों में से एक था।

जब महाभारत के युद्ध में पांडु पुत्र युधिष्ठिर के हित के लिये प्रयत्‍न करने वाले भरतवंशी महारथी युयुत्सु को सुबाहु ने प्रयत्‍नपूर्वक द्रोणाचार्य की ओर आने से रोक दिया, तब युयुत्‍सु ने प्रहार करते हुए सुबाहु की परिघ के समान मोटी एवं धनुष बाणों से युक्‍त दोनों भुजाओं को अपने तीखे और पानीदार दो छूरों द्वारा काट गिराया।[1]


इन्हें भी देखें: महाभारत, धृतराष्ट्र, कौरव एवं पांडव


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टीका टिप्पणी

  1. महाभारत द्रोण पर्व |अनुवादक: साहित्याचार्य पण्डित रामनारायणदत्त शास्त्री पाण्डेय 'राम' |प्रकाशक: गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 3175 |

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