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कीचक क्षत्रिय पिता तथा ब्राह्मणी माता का सूत पुत्र कहलाता है। | '''कीचक''' [[महाभारत]] में [[विराट नगर|विराट]] नरेश का साला तथा उनकी पत्नि [[सुदेष्णा]] का भाई था। वह अत्यधिक बलशाली और वीर सेनापति था, किंतु [[पांडु]] पुत्र [[भीम]] के हाथों उसका वध हुआ था। कीचक [[क्षत्रिय]] [[पिता]] तथा ब्राह्मणी [[माता]] का सूत पुत्र कहलाता है। वह [[केकय]] राजा (सूतों के अधिपति) के मालवी नामक पत्नी के पूत्रों में सबसे बड़ा था। [[केकय]] नरेश की दूसरी रानी की कन्या का नाम [[सुदेष्णा]] था, वही अपने अनेक भाइयों की एकमात्र बहन थी, जिसका [[विवाह]] राजा [[विराट]] से हुआ था। उसके भाइयों की संख्या बहुत अधिक थी तथा सभी शक्तिशाली होकर विराट के साथियों में थे। | ||
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सुदेष्णा ने उसे यथेच्छ दिवस रहने की अनुमति दी, साथ ही अपनी सुहृदजनों की रक्षा करने का भार भी उसे सौंप दिया।<ref>[[महाभारत]], [[विराट पर्व महाभारत|विराटपर्व]], अध्याय 14 से 24 तक</ref> | [[चित्र:Kichaka.jpg|thumb|250px|right|विराट की सभा में कीचक द्वारा [[सैरंध्री]] का अपमान]] | ||
==द्रोपदी से विवाह प्रस्ताव== | |||
अपने [[अज्ञातवास]] के समय [[पाण्डव]] विराट के महल में छद्मवेश में रह रहे थे। महल में [[द्रौपदी]] को [[सैरंध्री]] बनकर छद्मवेश में रानी सुदेष्णा की सेवा करते दस मास से अधिक हो चुके थे, तभी एक दिन राजा विराट के सेनापति तथा साले कीचक ने उसे देखा तो उस पर आसक्त हो गया। उसने सुदेष्णा की आज्ञा लेकर सैरंध्री के सम्मुख विवाह का प्रस्ताव रखा, किंतु सैरंध्री ने यह बता कर कि उसका विवाह हो चुका है तथा पाँच शक्ति संपन्न [[गंधर्व]] उसके पति तथा सरंक्षक हैं, उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। | |||
====अभद्र व्यवहारी==== | |||
द्रोपदी के इंकार करने पर भी कीचक मानने वाला नहीं था। रानी को भी उसके रूप के प्रति अपने पति के आकर्षण का भय बना रहता था, अत: उसने भाई से सलाह कर एक दिन सैरंध्री को उसके महल में शराब लेने के बहाने भेजा। मार्ग में सैरंध्री [[सूर्य देवता|सूर्य]] भगवान से अपनी रक्षा की प्रार्थना करती हुई गयी। कीचक पहले से ही तैयार था। उसने सैरंध्री से बहुत ही अभद्र व्यवहार किया और उसके साथ बलात्कार करने का प्रयास किया। किंतु सैरंध्री उससे छूटकर दौड़ती हुई राजा विराट की सभा में पहुँची। कीचक ने उसे अपने पांव से ठोकर मारी तथा उसके बाल खींचे- किंतु [[अज्ञातवास]] का भेद खुलने के भय से [[पांडव]] सब कुछ देखते हुए भी उसकी रक्षा के लिए आगे नहीं बढ़े। राजा विराट ने कीचक को समझा-बुझाकर लौटा दिया। | |||
==वध== | |||
सैरंध्री ([[द्रौपदी]]) बहुत दु:खी होकर रात के समय 'वल्लभ' ([[भीमसेन]]) के रसोईगृह में पहुँची और सारी बात बताई। तब भीमसेन ने वचन दिया कि वह कीचक को मार डालेगा। भीम ने द्रौपदी से मन्त्रणा की, तदनुसार कीचक के पुन: प्रणय-निवेदन पर द्रौपदी ने रात्रि के अंधकार में जन शून्य नृत्य शाला में उससे मिलने का वादा किया। रात में वल्लभ (भीम) नृत्य शाला में स्थित पलंग पर चादर ओढ़ कर लेट गया। कीचक के आने पर उसने उससे युद्ध किया तथा उसका वध कर सदा के लिए मृत्यु लोक भेज दिया। कीचक के विषय में जानकर सबने समझा कि सैरंध्री के पाँचों [[गंधर्व]] पतियों ने उसे मार डाला है। अत: समस्त उपकीचकों (कीचक के संबंधियों) ने सैरंध्री को कीचक के साथ ही श्मशान में भस्म करने की ठानी। सैरंध्री ने पूर्व निश्चित पाँचों नामों (जय, जयंत, विजय, जयत्सेन, जयद्वल) को पुकारकर रक्षा करने को कहा। वल्लभ ([[भीम]]) ने अपनी इच्छानुसार एक विशाल रूप धारण किया तथा श्मशान में जाकर एक सौ पाँच उपकीचकों का वध कर सैरंध्री को छुड़ा लिया। शेष समस्त लोग वहाँ से भाग गये। वह पुन: रूप में रसोईगृह में जा पहुँचा।<br /> | |||
रानी सुदेष्णा ने सैरंध्री को बुलाकर कहा- "तुम्हारे गधर्व पतियों द्वारा प्राप्त पराभव से महाराज भयभीत हैं। अत: तुम अपनी इच्छानुसार कहीं चली जाओं।" सैरंध्री ने कहा- "मुझे मात्र तेरह दिन यहाँ रहने की आज्ञा दीजिए, क्योंकि तब तक गंधर्वों का अभीष्ट पूर्ण हो जायेगा और वे मुझे लिवा ले जायेंगे। आपने मुझे आश्रय दिया, अत: वे आपकी कृतज्ञता सदैव स्वीकार करते रहेंगे। इससे आपका कल्याण होगा।" [[सुदेष्णा]] ने उसे यथेच्छ दिवस रहने की अनुमति दी, साथ ही अपनी सुहृदजनों की रक्षा करने का भार भी उसे सौंप दिया।<ref>[[महाभारत]], [[विराट पर्व महाभारत|विराटपर्व]], अध्याय 14 से 24 तक</ref> | |||
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10:09, 24 मई 2016 के समय का अवतरण
कीचक महाभारत में विराट नरेश का साला तथा उनकी पत्नि सुदेष्णा का भाई था। वह अत्यधिक बलशाली और वीर सेनापति था, किंतु पांडु पुत्र भीम के हाथों उसका वध हुआ था। कीचक क्षत्रिय पिता तथा ब्राह्मणी माता का सूत पुत्र कहलाता है। वह केकय राजा (सूतों के अधिपति) के मालवी नामक पत्नी के पूत्रों में सबसे बड़ा था। केकय नरेश की दूसरी रानी की कन्या का नाम सुदेष्णा था, वही अपने अनेक भाइयों की एकमात्र बहन थी, जिसका विवाह राजा विराट से हुआ था। उसके भाइयों की संख्या बहुत अधिक थी तथा सभी शक्तिशाली होकर विराट के साथियों में थे।

द्रोपदी से विवाह प्रस्ताव
अपने अज्ञातवास के समय पाण्डव विराट के महल में छद्मवेश में रह रहे थे। महल में द्रौपदी को सैरंध्री बनकर छद्मवेश में रानी सुदेष्णा की सेवा करते दस मास से अधिक हो चुके थे, तभी एक दिन राजा विराट के सेनापति तथा साले कीचक ने उसे देखा तो उस पर आसक्त हो गया। उसने सुदेष्णा की आज्ञा लेकर सैरंध्री के सम्मुख विवाह का प्रस्ताव रखा, किंतु सैरंध्री ने यह बता कर कि उसका विवाह हो चुका है तथा पाँच शक्ति संपन्न गंधर्व उसके पति तथा सरंक्षक हैं, उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
अभद्र व्यवहारी
द्रोपदी के इंकार करने पर भी कीचक मानने वाला नहीं था। रानी को भी उसके रूप के प्रति अपने पति के आकर्षण का भय बना रहता था, अत: उसने भाई से सलाह कर एक दिन सैरंध्री को उसके महल में शराब लेने के बहाने भेजा। मार्ग में सैरंध्री सूर्य भगवान से अपनी रक्षा की प्रार्थना करती हुई गयी। कीचक पहले से ही तैयार था। उसने सैरंध्री से बहुत ही अभद्र व्यवहार किया और उसके साथ बलात्कार करने का प्रयास किया। किंतु सैरंध्री उससे छूटकर दौड़ती हुई राजा विराट की सभा में पहुँची। कीचक ने उसे अपने पांव से ठोकर मारी तथा उसके बाल खींचे- किंतु अज्ञातवास का भेद खुलने के भय से पांडव सब कुछ देखते हुए भी उसकी रक्षा के लिए आगे नहीं बढ़े। राजा विराट ने कीचक को समझा-बुझाकर लौटा दिया।
वध
सैरंध्री (द्रौपदी) बहुत दु:खी होकर रात के समय 'वल्लभ' (भीमसेन) के रसोईगृह में पहुँची और सारी बात बताई। तब भीमसेन ने वचन दिया कि वह कीचक को मार डालेगा। भीम ने द्रौपदी से मन्त्रणा की, तदनुसार कीचक के पुन: प्रणय-निवेदन पर द्रौपदी ने रात्रि के अंधकार में जन शून्य नृत्य शाला में उससे मिलने का वादा किया। रात में वल्लभ (भीम) नृत्य शाला में स्थित पलंग पर चादर ओढ़ कर लेट गया। कीचक के आने पर उसने उससे युद्ध किया तथा उसका वध कर सदा के लिए मृत्यु लोक भेज दिया। कीचक के विषय में जानकर सबने समझा कि सैरंध्री के पाँचों गंधर्व पतियों ने उसे मार डाला है। अत: समस्त उपकीचकों (कीचक के संबंधियों) ने सैरंध्री को कीचक के साथ ही श्मशान में भस्म करने की ठानी। सैरंध्री ने पूर्व निश्चित पाँचों नामों (जय, जयंत, विजय, जयत्सेन, जयद्वल) को पुकारकर रक्षा करने को कहा। वल्लभ (भीम) ने अपनी इच्छानुसार एक विशाल रूप धारण किया तथा श्मशान में जाकर एक सौ पाँच उपकीचकों का वध कर सैरंध्री को छुड़ा लिया। शेष समस्त लोग वहाँ से भाग गये। वह पुन: रूप में रसोईगृह में जा पहुँचा।
रानी सुदेष्णा ने सैरंध्री को बुलाकर कहा- "तुम्हारे गधर्व पतियों द्वारा प्राप्त पराभव से महाराज भयभीत हैं। अत: तुम अपनी इच्छानुसार कहीं चली जाओं।" सैरंध्री ने कहा- "मुझे मात्र तेरह दिन यहाँ रहने की आज्ञा दीजिए, क्योंकि तब तक गंधर्वों का अभीष्ट पूर्ण हो जायेगा और वे मुझे लिवा ले जायेंगे। आपने मुझे आश्रय दिया, अत: वे आपकी कृतज्ञता सदैव स्वीकार करते रहेंगे। इससे आपका कल्याण होगा।" सुदेष्णा ने उसे यथेच्छ दिवस रहने की अनुमति दी, साथ ही अपनी सुहृदजनों की रक्षा करने का भार भी उसे सौंप दिया।[1]