आश्चर्य का ठिकाना न रहना एक प्रचलित लोकोक्ति अथवा हिन्दी मुहावरा है।
अर्थ- अत्यधिक आश्चर्य चकित होना, भौचक्का होना।
प्रयोग- यह देखकर लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि राम के मुँह का भाव जैसा राज्यभिषेक के रेशमी वस्त्र पहनते समय था, ठीक वैसा ही वन जाने के लिए पेड़ की छल के वस्त्र पहनते समय भी था। - (सीताराम चतुर्वेदी)