"कहावत लोकोक्ति मुहावरे-ख": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "{{कहावत लोकोक्ति मुहावरे}}" to "{{कहावत लोकोक्ति मुहावरे}}{{कहावत लोकोक्ति मुहावरे2}}") |
||
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 5 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{कहावत लोकोक्ति मुहावरे}} | {{कहावत लोकोक्ति मुहावरे}}{{कहावत लोकोक्ति मुहावरे2}} | ||
{| class="bharattable-pink" | |||
{| class="bharattable" | |||
|- | |- | ||
!कहावत लोकोक्ति मुहावरे | ! style="width:30%"| कहावत लोकोक्ति मुहावरे | ||
!अर्थ | ! style="width:70%"| अर्थ | ||
|- | |- | ||
| | | 1- [[खिसयानी बिल्ली खंभा नोचे]] | ||
1- खिसयानी बिल्ली खंभा नोचे | | अर्थ - सफलता न मिलने पर दूसरों को दोष देना। | ||
| | |||
अर्थ - सफलता न मिलने पर दूसरों को दोष देना। | |||
|- | |- | ||
|2- खोदा पहाड़ निकली | |2- [[खोदा पहाड़ निकली चुहिया]]। | ||
| | | अर्थ - उम्मीद से बहुत कम फल मिलना। | ||
अर्थ - उम्मीद से बहुत कम फल मिलना। | |||
|- | |- | ||
|3- खेती करे खाद से भरे, सो मन कोठी में ले धर… | |3- खेती करे खाद से भरे, सो मन कोठी में ले धर… खाद पड़े तो होवे खेती, नहीं तो रहे नदी की रेती॥ | ||
खाद पड़े तो होवे खेती, नहीं तो रहे नदी की रेती॥ | | अर्थ - किसान को खेत में ख़ूब खाद डालनी चाहिए, जिससे ज़्यादा फ़सल घर में आये। बिना खाद के धरती सूखी नदी के रेत की तरह रहती है। | ||
| | |||
अर्थ - किसान को खेत में ख़ूब खाद डालनी चाहिए, जिससे ज़्यादा फ़सल घर में आये। बिना खाद के धरती सूखी नदी के रेत की तरह रहती है। | |||
|- | |- | ||
|4- खेती करै वणिक को धावै, ऐसा डूबै थाह न पावै। | |4- खेती करै वणिक को धावै, ऐसा डूबै थाह न पावै। | ||
| | | अर्थ - कृषक बनिये के कर्ज़ से कभी नहीं निकल पाता है। | ||
अर्थ - कृषक बनिये के कर्ज़ से कभी नहीं निकल पाता है। | |||
|- | |- | ||
|5- खाद पड़े तो खेत, नहीं तो कूड़ा रेत। | |5- खाद पड़े तो खेत, नहीं तो कूड़ा रेत। | ||
| | | अर्थ - खेत में खाद ड़ाली जाती है तो फ़सल अच्छी होती है।। | ||
अर्थ - खेत में खाद ड़ाली जाती है तो फ़सल अच्छी होती है।। | |||
|- | |- | ||
|6- खनिके काटै घनै मोरावै। | |6- खनिके काटै घनै मोरावै। तव बरदा के दाम सुलावै।। | ||
तव बरदा के दाम सुलावै।। | | अर्थ - ईख को जड़ से खोदकर काटने और ख़ूब निचोड़कर पेरने से ही लाभ होता है, तभी बैलों का दाम भी वसूल होता है। | ||
| | |||
अर्थ - ईख को जड़ से खोदकर काटने और ख़ूब निचोड़कर पेरने से ही लाभ होता है, तभी बैलों का दाम भी वसूल होता है। | |||
|- | |- | ||
|7- खग जाने खग ही की भाषा।। | |7- खग जाने खग ही की भाषा।। | ||
| | | अर्थ - अपने वर्ग के लोग ही एक दूसरे को समझ सकते हैं। | ||
अर्थ - अपने वर्ग के लोग ही एक दूसरे को समझ सकते हैं। | |||
|- | |- | ||
|8- ख़्याली पुलाव से पेट नहीं भरता।। | |8- ख़्याली पुलाव से पेट नहीं भरता।। | ||
| | |अर्थ - केवल सोचने से काम पूरा नहीं हो जाता। | ||
अर्थ - केवल सोचने से काम पूरा नहीं हो जाता। | |||
|- | |- | ||
|9- ख़रबूज़े को देखकर ख़रबूज़ा रंग बदलता है। | |9- ख़रबूज़े को देखकर ख़रबूज़ा रंग बदलता है। | ||
| | |अर्थ - एक दूसरे की देखा देखी काम करना। | ||
अर्थ - एक दूसरे की देखा देखी काम करना। | |||
|- | |- | ||
|10- खई खोजे और को ताको खुब तैयार। | |10- खई खोजे और को ताको खुब तैयार। | ||
| | |अर्थ - जो दूसरों का बुरा चाहता है उसका अपना बुरा होता है। | ||
अर्थ - जो दूसरों का बुरा चाहता है उसका अपना बुरा होता है। | |||
|- | |- | ||
|11- ख़ाक डाले चाँद नहीं छिपता। | |11- ख़ाक डाले चाँद नहीं छिपता। | ||
| | |अर्थ - अच्छे आदमी की निंदा करने से उसका कुछ नहीं बिगड़ता। | ||
अर्थ - अच्छे आदमी की निंदा करने से उसका कुछ नहीं बिगड़ता। | |||
|- | |- | ||
|12- खाल ओढ़ाए सिंह की, स्यार सिंह नहीं होय। | |12- खाल ओढ़ाए सिंह की, स्यार सिंह नहीं होय। | ||
| | |अर्थ - ऊपरी रूप बदलने से गुण अवगुण नहीं बदलते। | ||
अर्थ - ऊपरी रूप बदलने से गुण अवगुण नहीं बदलते। | |||
|- | |- | ||
|13- ख़ाली बनिया क़यास करे, | |13- ख़ाली बनिया क़यास करे, इस कोठी का धान उस कोठी में धरे। | ||
इस कोठी का धान उस कोठी में धरे। | | अर्थ - बेकाम आदमी उल्टे-सीधे काम करता रहता है। | ||
| | |||
अर्थ - बेकाम आदमी उल्टे | |||
|- | |- | ||
|14- ख़ुदा की लाठी में आवाज़ नहीं। | |14- ख़ुदा की लाठी में आवाज़ नहीं। | ||
| | | अर्थ - कोई नहीं जानता की भगवान कब , कैसे और क्यों दंड देता है। | ||
अर्थ - कोई नहीं जानता की भगवान कब , कैसे और क्यों दंड देता है। | |||
|- | |- | ||
|15- ख़ुदा गंजे को नाख़ून न दे। | |15- ख़ुदा गंजे को नाख़ून न दे। | ||
| | | अर्थ - ओछा और बेसमझ आदमी अधिकार पाकर अपनी ही हानि कर बैठता है। | ||
अर्थ - ओछा और बेसमझ आदमी अधिकार पाकर अपनी ही हानि कर बैठता है। | |||
|- | |- | ||
|16- ख़ुदा देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है। | |16- ख़ुदा देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है। | ||
| | | अर्थ - ईश्वर जिसको चाहे मालामाल कर दे। | ||
अर्थ - ईश्वर जिसको चाहे मालामाल कर दे। | |||
|- | |- | ||
|17- खुशामद से ही आमद है।। | |17- खुशामद से ही आमद है।। | ||
| | | अर्थ - खुशामद से ही धन आता है। | ||
अर्थ - खुशामद से ही धन आता है। | |||
|- | |- | ||
|18- खूंटें के बल बछड़ा कूदे। | |18- खूंटें के बल बछड़ा कूदे। | ||
| | | अर्थ - किसी की शह पाकर ही आदमी अकड़ दिखाता है। | ||
अर्थ - किसी की शह पाकर ही आदमी अकड़ दिखाता है। | |||
|- | |- | ||
|19- खेत खाए गदहा, मार खाए जुलाहा। | |19- खेत खाए गदहा, मार खाए जुलाहा। | ||
| | | अर्थ - दोष किसी का दंड किसी और को। | ||
अर्थ - दोष किसी का दंड किसी और को। | |||
|- | |- | ||
|20- खेती,खसम लेती। | |20- खेती,खसम लेती। | ||
| | | अर्थ - कोई काम अपने हाथ से करने पर ही ठीक होता है। | ||
अर्थ - कोई काम अपने हाथ से करने पर ही ठीक होता है। | |||
|- | |- | ||
|21- खेल –खिलाड़ी का, पैसा मदारी का। | |21- खेल –खिलाड़ी का, पैसा मदारी का। | ||
| | | अर्थ - मेहनत किसी की लाभ किसी दूसरे का। | ||
अर्थ - मेहनत किसी की लाभ किसी दूसरे का। | |||
|- | |- | ||
|22- खेत रहना। | |22- खेत रहना। | ||
| | | अर्थ - रणभूमि में मारा जाना। | ||
अर्थ - रणभूमि में मारा जाना। | |||
|- | |- | ||
|23- खेल खेलना। | |23- खेल खेलना। | ||
| | | अर्थ - परेशान करना। | ||
अर्थ - परेशान करना। | |||
|- | |- | ||
|24- खटाई में पड़ना। | |24- खटाई में पड़ना। | ||
| | |अर्थ - टल जाना। | ||
अर्थ - टल जाना। | |||
|- | |- | ||
|25- ख़्याली पुलाव पकाना। | |25- ख़्याली पुलाव पकाना। | ||
| | |अर्थ - व्यर्थ की कल्पना करना। | ||
अर्थ - व्यर्थ की कल्पना करना। | |||
|- | |- | ||
|26- ख़ाक छानना। | |26- ख़ाक छानना। | ||
| | |अर्थ - मारा-मारा फिरना। | ||
अर्थ - मारा-मारा फिरना। | |||
|- | |- | ||
|27- ख़ाक में मिलाना। | |27- ख़ाक में मिलाना। | ||
| | |अर्थ - नष्ट करना। | ||
अर्थ - नष्ट करना। | |||
|- | |- | ||
|28- खिचड़ी पकाना। | |28- खिचड़ी पकाना। | ||
| | |अर्थ - अंदर ही अंदर षड्यंत्र रचना। | ||
अर्थ - अंदर ही अंदर षड्यंत्र रचना। | |||
|- | |- | ||
|29- खुले हाथ। | |29- खुले हाथ। | ||
| | |अर्थ - उदार होना। | ||
अर्थ - उदार होना। | |||
|- | |- | ||
|30- खूँटे के बल कूदना। | |30- खूँटे के बल कूदना। | ||
| | |अर्थ - कोई सहारा मिलने पर अकड़ना। | ||
अर्थ - कोई सहारा मिलने पर अकड़ना। | |||
|- | |- | ||
|31- ख़ून का घूँट पीना। | |31- ख़ून का घूँट पीना। | ||
| | |अर्थ - ग़ुस्सा पचा जाना। | ||
अर्थ - ग़ुस्सा पचा जाना। | |||
|- | |- | ||
|32- ख़ून खुश्क होना। | |32- ख़ून खुश्क होना। | ||
| | |अर्थ - भयभीत होना। | ||
अर्थ - भयभीत होना। | |||
|- | |- | ||
|33- ख़ून खौलना / उबलना। | |33- ख़ून खौलना / उबलना। | ||
| | |अर्थ - जोश में आना। | ||
अर्थ - जोश में आना। | |||
|- | |- | ||
|34- ख़ून-पसीना एक करना। | |34- ख़ून-पसीना एक करना। | ||
| | |अर्थ - कड़ी मेहनत करना। | ||
अर्थ - कड़ी मेहनत करना। | |||
|} | |} | ||
[[Category:कहावत_लोकोक्ति_मुहावरे]] | [[Category:कहावत_लोकोक्ति_मुहावरे]] | ||
[[Category:साहित्य कोश]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
12:09, 20 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
कहावत लोकोक्ति मुहावरे वर्णमाला क्रमानुसार खोजें
कहावत लोकोक्ति मुहावरे | अर्थ |
---|---|
1- खिसयानी बिल्ली खंभा नोचे | अर्थ - सफलता न मिलने पर दूसरों को दोष देना। |
2- खोदा पहाड़ निकली चुहिया। | अर्थ - उम्मीद से बहुत कम फल मिलना। |
3- खेती करे खाद से भरे, सो मन कोठी में ले धर… खाद पड़े तो होवे खेती, नहीं तो रहे नदी की रेती॥ | अर्थ - किसान को खेत में ख़ूब खाद डालनी चाहिए, जिससे ज़्यादा फ़सल घर में आये। बिना खाद के धरती सूखी नदी के रेत की तरह रहती है। |
4- खेती करै वणिक को धावै, ऐसा डूबै थाह न पावै। | अर्थ - कृषक बनिये के कर्ज़ से कभी नहीं निकल पाता है। |
5- खाद पड़े तो खेत, नहीं तो कूड़ा रेत। | अर्थ - खेत में खाद ड़ाली जाती है तो फ़सल अच्छी होती है।। |
6- खनिके काटै घनै मोरावै। तव बरदा के दाम सुलावै।। | अर्थ - ईख को जड़ से खोदकर काटने और ख़ूब निचोड़कर पेरने से ही लाभ होता है, तभी बैलों का दाम भी वसूल होता है। |
7- खग जाने खग ही की भाषा।। | अर्थ - अपने वर्ग के लोग ही एक दूसरे को समझ सकते हैं। |
8- ख़्याली पुलाव से पेट नहीं भरता।। | अर्थ - केवल सोचने से काम पूरा नहीं हो जाता। |
9- ख़रबूज़े को देखकर ख़रबूज़ा रंग बदलता है। | अर्थ - एक दूसरे की देखा देखी काम करना। |
10- खई खोजे और को ताको खुब तैयार। | अर्थ - जो दूसरों का बुरा चाहता है उसका अपना बुरा होता है। |
11- ख़ाक डाले चाँद नहीं छिपता। | अर्थ - अच्छे आदमी की निंदा करने से उसका कुछ नहीं बिगड़ता। |
12- खाल ओढ़ाए सिंह की, स्यार सिंह नहीं होय। | अर्थ - ऊपरी रूप बदलने से गुण अवगुण नहीं बदलते। |
13- ख़ाली बनिया क़यास करे, इस कोठी का धान उस कोठी में धरे। | अर्थ - बेकाम आदमी उल्टे-सीधे काम करता रहता है। |
14- ख़ुदा की लाठी में आवाज़ नहीं। | अर्थ - कोई नहीं जानता की भगवान कब , कैसे और क्यों दंड देता है। |
15- ख़ुदा गंजे को नाख़ून न दे। | अर्थ - ओछा और बेसमझ आदमी अधिकार पाकर अपनी ही हानि कर बैठता है। |
16- ख़ुदा देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है। | अर्थ - ईश्वर जिसको चाहे मालामाल कर दे। |
17- खुशामद से ही आमद है।। | अर्थ - खुशामद से ही धन आता है। |
18- खूंटें के बल बछड़ा कूदे। | अर्थ - किसी की शह पाकर ही आदमी अकड़ दिखाता है। |
19- खेत खाए गदहा, मार खाए जुलाहा। | अर्थ - दोष किसी का दंड किसी और को। |
20- खेती,खसम लेती। | अर्थ - कोई काम अपने हाथ से करने पर ही ठीक होता है। |
21- खेल –खिलाड़ी का, पैसा मदारी का। | अर्थ - मेहनत किसी की लाभ किसी दूसरे का। |
22- खेत रहना। | अर्थ - रणभूमि में मारा जाना। |
23- खेल खेलना। | अर्थ - परेशान करना। |
24- खटाई में पड़ना। | अर्थ - टल जाना। |
25- ख़्याली पुलाव पकाना। | अर्थ - व्यर्थ की कल्पना करना। |
26- ख़ाक छानना। | अर्थ - मारा-मारा फिरना। |
27- ख़ाक में मिलाना। | अर्थ - नष्ट करना। |
28- खिचड़ी पकाना। | अर्थ - अंदर ही अंदर षड्यंत्र रचना। |
29- खुले हाथ। | अर्थ - उदार होना। |
30- खूँटे के बल कूदना। | अर्थ - कोई सहारा मिलने पर अकड़ना। |
31- ख़ून का घूँट पीना। | अर्थ - ग़ुस्सा पचा जाना। |
32- ख़ून खुश्क होना। | अर्थ - भयभीत होना। |
33- ख़ून खौलना / उबलना। | अर्थ - जोश में आना। |
34- ख़ून-पसीना एक करना। | अर्थ - कड़ी मेहनत करना। |