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#अरे बाज़ार में इतना कुछ क्यों खाते हो। आजकल तुम्हारी कुछ ज़्यादा ही 'ज़बान बिगड़' गई है। | |||
#माँ ने मोहन से कहा- "कुछ अधिक ही तुम्हारी 'ज़बान बिगड़' गई है, इसीलिए पलट कर जवाब देते हो। | |||
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12:39, 21 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
ज़बान बिगड़ना एक प्रचलित लोकोक्ति अथवा हिन्दी मुहावरा है।
अर्थ-
- अस्वस्थता, रुग्णता आदि के कारण मुँह का स्वाद बिगड़ना।
- बढ़िया-बढ़िया और चटपटी चीज़ें खाने का चस्का पड़ना।
- मुँह से अपशब्द निकलना।
प्रयोग -
- हरीश कई दिन से बुख़ार में पड़ा हुआ है, जिस कारण उसकी 'ज़बान बिगड़' गई है।
- अरे बाज़ार में इतना कुछ क्यों खाते हो। आजकल तुम्हारी कुछ ज़्यादा ही 'ज़बान बिगड़' गई है।
- माँ ने मोहन से कहा- "कुछ अधिक ही तुम्हारी 'ज़बान बिगड़' गई है, इसीलिए पलट कर जवाब देते हो।