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#आवेश में तो न जाने क्या सोच लेता है आदमी। मगर साधनहीन होने के बाद | #आवेश में तो न जाने क्या सोच लेता है आदमी। मगर साधनहीन होने के बाद ख़ाली दाँत पीसकर रह जाता है। -अजित पुष्कल। | ||
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12:40, 21 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
दाँत पीसना एक प्रचलित लोकोक्ति अथवा हिन्दी मुहावरा है।
अर्थ- क्रोध से अभिभूत होने पर इस प्रकार दाँतो से दाँत दबाना कि मानो खा या चबा ही जाएँगे।
प्रयोग-
- जो ज़माने से पिस रहे थे वे दाँत पीसकर समाने आए। - राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह।
- आवेश में तो न जाने क्या सोच लेता है आदमी। मगर साधनहीन होने के बाद ख़ाली दाँत पीसकर रह जाता है। -अजित पुष्कल।