कँलगी

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कँलगी - (काव्य प्रयोग, पुरानी हिन्दी) संज्ञा स्त्रीलिंग (फ़ारसी कँलगी)[1]

कलगी

उदाहरण-

कँलगी ओ नवरतन पन्हावा। ताह सचिव कै कोरि चढ़ावा। - हिन्दी प्रेमाख्यानक[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 732 |
  2. हिन्दी प्रेमाख्यानक, पृष्ठ 272, काव्य संग्रह, सम्पादक डॉ. कमल कुलश्रेष्ठ, चौधरी भानसिंह प्रकाशन, कचहरी रोड

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