कटाग्नि - (संज्ञा, स्त्री० सं०) कट या घास फूस की आग।[1]
विशेष - प्राचीन काल में राजपत्नी या ब्राह्मणी के गमन आदि के प्रायश्चित्त या दंड के लिये लोग कटाग्नि में जलते या जलाए जाते थे। कहते हैं कि कुमारिल भट्ट गुरुसिद्धांत का खंडन करने के प्रायश्चित्त के लिये कटाग्नि में जल मरे थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 750 |
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