कज

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कज - (काव्य प्रयोग, पुरानी हिन्दी) (संस्कृत कार्य, प्राकृत कज्ज)[1]

काज।

उदाहरण-

हमहिं बहुत अभिलाष देव बोरानि दरस कज। - पृथ्वीराज रासो[2]

कज - संज्ञा पुल्लिंग (फ़ारसी)

1. टेढ़ापन। जैसे- उनके पैर में कुछ कज है।

क्रिया प्रयोग- आना, पड़ना।

मुहावरा- 'कज निकालना'=टेढ़ापन दूर करना। सीधा करना।

2. कसर। दोष। दूषण। ऐब।

क्रिया प्रयोग- आना, पड़ना, होना।

मुहावरा- 'कज निकालना'= (1) दोष दूर करना। (2) दोष बतलाना। दूषण दिखाना।

यौगिक- कजअब्रू=कुटिल भ्रूवाला। धनुषाकार भौंह वाला।

कजफहम=उल्टी सीधी समझ वाला। नासमझ।

कजरफ्तार=टेड़ी चाल वाला। वक्रगामी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 744 |
  2. पृथ्वीराज रासो, खंड 5, 6।148, सं. मोहनलाल विष्णुलाल पंड्या, श्यामसुंदर दास, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्रथम संस्करण

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