कंठ

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कंठ - संज्ञा पुल्लिंग (संस्कृत कण्ठ) (विशेषण कंठ्य)[1]

1. गला। टेंटुआ।

उदाहरण-

मेली कंठ सुमन की माला। - मानस[2]


यौगिक - कंठमाला।

मुहावरा- 'कंठ सूखना' = प्यास से गला सूखना।

2. गले की वे नलियाँ जिनसे भोजन नीचे उतरता है और आवाज निकलती है। घाँटी।


यौगिक - कंठस्थ। कंठाग्र।

मुहावरा- 'कंठ करना' या 'रखना' = कंठस्थ करना या रखना। जबानी याद करना या रखना।

कंठ खुलना = (1.) रुंधे हुए गले का साफ होना।
(2.) आवाज निकलना।

कंठ फूटना = (1.) वर्णों के स्पष्ट उच्चारण का प्रारंभ होना। आवाज खुलना। बच्चों की आवाज साफ होना। (2.) बकारी फूटना। बक्कुर निकलना। मुंह से शब्द निकलना। (3.) घाँटी फूटना। युवावस्था आरंभ होने पर आवाज का बदलना।

कंठ बैठना या गला बैठना = आवाज का बेसुरा हो जाना। आवाज का भारी होना।

कंठ होना = कंठाग्र होना। जबानी याद होना। जैसे- उनको यह सारी पुस्तक कंठ है।

3. स्वर। आवाज। शब्द। जैसे- उसका कंठ बड़ा कोमल है।

उदाहरण-
अति उज्वला सब कालहु बसे। शुक केकि पिकादिक कंठहु लसै। - केशव[3]

4. वह लाल नीली आदि कई रंगों की लकीर जो सुग्गों, पंडुक आदि पक्षियों के गले के चारों ओर जवानी में पड़ जाती है। हँसली। कंठा।

उदाहरण-
(क) राते श्याम कंठ दुइ गीवाँ। तेहि दुई फंद डरो सठ जीवाँ। - जायसी[4]

मुहावरा- 'कंठ फूटना' = तोते आदि पक्षियों के गले में रंगीन रेखाएँ पड़ना। हँसली पड़ना या फूटना।

उदहरण- हीरामन हीं तेहिक परेवा। कंठा फूट करत तेहि सेवा। - जायसी[5]

5. किनारा। तट। तीर। काँठा। जैसे- वह गाँव नदी के कंठ पर बसा है।

6. अधिकार में। पास।

उदाहरण- जिन कंठन षुरसांन। - पृथ्वीराज रासो[6]

7. मैनफल का पेड़। मदन वृक्ष।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 721 |
  2. रामचरितमानस, 4।8, सम्पादक शंभूनारायण चौबे, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्रथम संस्करण
  3. केशवदास
  4. मलिक मुहम्मद जायसी
  5. मलिक मुहम्मद जायसी
  6. पृथ्वीराज रासो, खंड 5, सम्पादक मोहनलाल विष्णुलाल पंड्या, श्यामसुंदरदास, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्रथम संस्करण

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