कंदर्प

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कंदर्प - संज्ञा पुल्लिंग (संस्कृत कंदर्प)[1]

1. कामदेव

यौगिक-

'कंदर्प कूप' = भग। योनि।

कंदर्पज्वर = काम का ज्वर।

कंदर्पदहन = शिव।

कंदर्पमथन = शिव। कंदर्पमुषल, कंदर्पमुसल = लिंग। शिश्न।

कंदर्पशृंखल = (1) रतिच्छद। (2) एक प्रकार का रतिबंध।

2. संगीत में रुद्रताल के 11 भेदों में से एक।

3. संगीत में एक प्रकार का ताल जिसमें कम से दो द्रुत, एक लघु और दो गुरु होते हैं। इसके पखावज के बोल इस प्रकार हैं- तक जग षिमि तक षाकृत धीकृत ऽ धिषिगत थीं थीं ऽ । प्रणय। प्यार[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 725 |
  2. अन्य कोश

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