कगही - (काव्य प्रयोग, पुरानी हिन्दी) संज्ञा स्त्रीलिंग (संस्कृत कङ्कती, प्राकृत कंकइ, ककही[1])[2]
कंघी।
उदाहरण-
लिये अतर कगही करन, सरस सुगंष समाज। चुटिया गुंथन कारनै लिय हुलसत ब्रजराज। - ब्रजनिधि ग्रंथावली[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ काव्य प्रयोग, पुरानी हिन्दी
- ↑ हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 735 |
- ↑ ब्रजनिधि ग्रंथावली, पृष्ठ 148, सम्पादक पुरोहित हरिनारायण शर्मा, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्रथम संस्करण
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