कंगाल - विशेषण (संस्कृत कङ्काल) (स्त्रीलिंग कंगालिन)[1]
1. भुक्खड़। अकाल का मारा।
- उदाहरण
तुलसी निहारि कपि भालु किलकत ललकत लखि ज्यों कंगाल पातरी सुनाज की।[2]
2. निर्धन। दरिद्र। गरीब रंक।
- उदाहरण
डाक्टरों के प्रयत्न से वह फिर सचेत हुई और कंगाल से घनी हुई।[3]
यौगिक
कंगाल गुडा = वह पुरुष जो कंगाल होने पर भी व्यसनी हो।
कंगाल बाँका = कंगाल गुंडा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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