कज्ज - (काव्य प्रयोग, पुरानी हिन्दी) अव्यय (संस्कृत कार्य, प्राकृत कज्ज)[1]
- लिये, वास्ते, निमित्त।
उदाहरण-
(क) विष से विषयन को तजिये तो डूबन ही के कज्ज। - भारतेंदु ग्रंथावली[2]
(ख) जब चालय प्रिथि जरा नृप, महुबे कज्ज रिसाय। - पृथ्वीराज रासो[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 746 |
- ↑ भारतेंदु ग्रंथावली, भाग 2, पृष्ठ 551, सम्पादक विश्वनाथप्रसाद मिश्र, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्रथम संस्करण
- ↑ पृथ्वीराज रासो, खंड 5, पृष्ठ 50, सं. मोहनलाल विष्णुलाल पंड्या, श्यामसुंदर दास, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्रथम संस्करण
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