कंचुरि - (काव्य प्रयोग, पुरानी हिन्दी) संज्ञा स्त्रीलिंग (संस्कृत कञ्चुली)[1]
केंचुल।
उदाहरण-
नैना हरि अंग रूप लुबधे रे माई। लोक लाज कुल की मर्यादा बिसराई।
जैसे चंदा चकोर, मुगी नाद जैसे। कंचुरि ज्यों त्यागि फनिक फिरत नहीं तैसे। - सूरदास
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 719 |
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